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ये दौर खून का हैं हवाओं में बह रहे नश्तर ———-कवि दीपक शर्मा

Sachchi Baat Kahi Thi Maine
Sachchi Baat Kahi Thi Maine
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घर से निकलो तो ज़माने से छुपा कर निकलो ,
आहट हो ना ज़रा भी पावँ दबा कर निकलो.

लौट आयें ये खुदा फिर से वापस घर में
कही चलने से पहले अब ये दुआ कर निकलो .

राहें मकतल बनी हैं , तू बेकफ़न न रह जाए
इसलिए हाथ पे पता घर का लिखा कर निकलो .

अपने ही खून के हाथों में हैं खंज़र इसलिए
रोएगा कौन तुझ पे ,खुद को रूला कर निकलो .

ये दौर खून का हैं हवाओं में बह रहे नश्तर
घर के हर शख्स को सीने से लगा कर निकलो

@कवि दीपक शर्मा
http://kavideepaksharma.com

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