Sachchi Baat Kahi Thi Maine
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साँस जाने बोझ कैसे जीवन का ढोती रही
नयन बिन अश्रु रहे पर ज़िन्दगी रोती रही
एक नाज़ुक ख्वाब का अंजाम कुछ ऐसा हुआ
मैं तड़पता रहा इधर वो उस तरफ़ रोती रही
भूख , आंसू और ग़मों ने उम्र तक पीछा किया
मेहनत के रुख पे ज़र्दियाँ , तन पे फटी धोती रही
उस महल के बिस्तरे पे सोते रहे कुत्ते-बिल्लियाँ
धूप में पिछवाडे एक बच्ची छोटी सोती रही
तंग आकर मुफलिसी से खुद्क़शी कर ली मगर
दो गज कफ़न को लाश उसकी बाट जोहती रही
”दीपक’ बशर की ख्वाहिशों का कद इतना बढ गया
कहीं ख्वाहिशों की भीड़ में ये ज़िन्दगी खोती रही
@Kavi Deepak Sharma
http//kavideepaksharma.com
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