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Delhi Gangrape- Ladai Zari Rahe
“इस तरह हुँकार दो कि आसमां भी काँप जाए
आवाम की आवाज़ सुन निजाम सारा थरथराये
हौसलों की आग़ से पिघला दो तख़्त -ओ -ताज को
ज़म्हूरियत के मायने नहीं लूट ले कोई लाज को
आज किसी भी हाल में नतीज़ा निकलना चाहिए
मुजरिमों के जिस्म को फंदे से लटकना चाहिए .
इन्साफ की पुकार को इतना न लम्बा खीचिये
कानून की दुहाई मुंसिफ हर जुर्म में न दीजिये
कुछ फैसले आज हुकुम सख्त-ओ-सख्त लीजिये
समाज में इंसाफ की तो एक पेश नज़ीर कीजिये
खून है जो रग में तो फिर खून उबलना चाहिए
आज किसी भी हाल में नतीज़ा निकलना चाहिए .
आवाम जब चिल्लाती है सरकारें पलट जाती हैं
सीमाएं सारी खौफ़ से दायरे में सिमट जाती हैं
हवाओं की ख़ामोशी का निजाम न इम्तिहान ले
खामोशियाँ नाराज़ हो तूफ़ान में बदल जाती हैं
सरकार का फ़रियाद से अब सीना दहलना चाहिए
आज किसी भी हाल में नतीज़ा निकलना चाहिए .
देखना फिर आकर कोई बातों में उलझाने न पाए
झूठे कोरे वायदे ले कोई बिचोलिया मनवाने न आये
अपना ही कोई आदमी देखो आग़ सुलगाने न पाए
अंजाम तक आने से पहले ये हौसला जाने न पाए
मौत के कदमों में मुजरिम सिर पटकना चाहिए
आज किसी भी हाल में नतीज़ा निकलना चाहिए .
@ कवि दीपक शर्मा
http://kavideepaksharma.com
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