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“भीड़ मे चलते रहे और भीड़ ही मे खो गए
इसलिए कुछ कद्दावर भी क़द मे बौने हो गए
अमृत पीने के लिए है आतुर तो सब रात-दिन
जब बारी मंथन की आई तो तान चादर सो गए
घर के आलों को नहीं था एक मयस्सर तक चिराग़
मियां रहनुमा क्या बन गए लो वर्क-ए-आसमां हो गए .
हैं बस्तियां नाबीनों की सब और गूंगा बहरा है निजाम
जिनकी आइनों की फेरियां थी सब आलमपनाह हो गए .
वो फलां ऐसा , फलां वैसा ,”दीपक ” कहते -कहते
रोज़ मशविरा जो देते थे सबको खुद दास्ताँ एक हो गए
@ Deepak Sharma
http://kavideepaksharma.com
मे चलते रहे और भीड़ ही मे खो गए
इसलिए कुछ कद्दावर भी क़द मे बौने हो गए
अमृत पीने के लिए है आतुर तो सब रात-दिन
जब बारी मंथन की आई तो तान चादर सो गए
घर के आलों को नहीं था एक मयस्सर तक चिराग़
मियां रहनुमा क्या बन गए लो वर्क-ए-आसमां हो गए .
हैं बस्तियां नाबीनों की सब और गूंगा बहरा है निजाम
जिनकी आइनों की फेरियां थी सब आलमपनाह हो गए .
वो फलां ऐसा , फलां वैसा ,”दीपक ” कहते -कहते
रोज़ मशविरा जो देते थे सबको खुद दास्ताँ एक हो गए
@ Deepak Sharma
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