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दौलत वाले प्यारे इनको दरिद्र भक्त बहुत खलते हैं

Sachchi Baat Kahi Thi Maine
Sachchi Baat Kahi Thi Maine
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हाथों में ले तुलसी माला ,काँधों पर भगवा दुशाला

आभूषण से लद्लद सीना ,चन्दन से रंगारंग हाला

खुद को प्रभु संत कहते हैं , महंगी कारों में चलते हैं

दौलत वाले प्यारे इनको दरिद्र भक्त बहुत खलते हैं .

कंप्यूटर में महारत हासिल ,मोबाईल आदत में शामिल

याद सभी ब्रांड मुँहज़ुबानी , हाथ समूचे करते झिलमिल

सिंहासन पर बैठ इतराते बस संकेतों से ही बतियाते

जब सत्य प्रश्नों से घबरा जाते,चीख-चीख ख़ूब गरियाते

भोज में छप्पन भोग चाहिए ,घी देशी का छोंक चाहिए

मिनरल वाटर,शीतल पेय पर नहीं कोई भी रोक चाहिए

ताम झाम के पुर शौक़ीन, देते प्रवचन केवल मन्चासीन

ले लाखों की गठरी एवज में फिर हो जाते मय आधीन

पंखा झलती उर्वशी रम्भा ,आम भक्त खा जाए अचम्भा

पैरोडी के भजन पे झूमें,किराये की नचनी हिला नितम्बा

बाहुबली से सेवक घेरा, महामण्डलेश्वर का बड़ा सा डेरा

क्या तेरा और क्या भक्त मेरा ,यहाँ सब कुछ मेरा ही मेरा

क्या संतों का स्वरूप बदल गया,क्या जग का प्रारूप बदल गया

उपदेशों की भाषा बदल गई,”दीपक” दरवेशों का रूप बदल गया

क्या कलयुगी संत ऐसे होते हैं जो राजनेताओं के घर पे सोते हैं

जो मोह माया से निकल नहीं पाते ,स्वं वासना के पुतले होते हैं ?

@ दीपक शर्मा

http://lagnkundli.com

http://kavideepaksharma.com

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